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Karnataka 2nd PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Gaurav Chapter 18 हो गई है पीर पर्वत-सी
हो गई है पीर पर्वत-सी Questions and Answers, Notes, Summary
I. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
कवि दुष्यन्त कुमार के अनुसार जनता की पीड़ा किसके समान है?
उत्तर:
कवि दुष्यंत कुमार के अनुसार जनता की पीड़ा पर्वत के समान है।
प्रश्न 2.
पीर पर्वत हिमालय से क्या निकलनी चाहिए?
उत्तर:
पीर पर्वत हिमालय से गंगा निकलनी चाहिए।
प्रश्न 3.
दीवार किसकी तरह हिलने लगी?
उत्तर:
दीवार परदों की तरह हिलने लगी।
प्रश्न 4.
कवि के अनुसार क्या शर्त थी?
उत्तर:
कवि के अनुसार शर्त यह थी कि बुनियाद हिलनी चाहिए।
प्रश्न 5.
पीड़ित व्यक्ति को किस प्रकार चलना चाहिए?
उत्तर:
पीड़ित व्यक्ति को हाथ लहराते हुए चलना चाहिए।
प्रश्न 6.
कवि का क्या मकसद नहीं है?
उत्तर:
सिर्फ हंगामा खड़ा करना कवि का मकसद नहीं है।
प्रश्न 7.
सीने में क्या जलनी चाहिए?
उत्तर:
सीने में आग जलनी चाहिए।
अतिरिक्त प्रश्न :
प्रश्न 1.
कवि की क्या कोशिश है?
उत्तर:
कवि की कोशिश है कि देश की सूरत बदलनी चाहिए।
प्रश्न 2.
‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ के गज़लकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ के गज़लकार दुष्यन्त कुमार है।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1.
कवि दुष्यन्त कुमार के अनुसार समाज में क्या फैला हुआ है?
उत्तर:
कवि दुष्यंत कुमार कहते हैं कि समाज में अब तो दुःख, दर्द, पीड़ा हद से गुजर गयी है। दुःख के इस महा पर्वत को अब पिघलना ही चाहिए। जैसे हिमालय से गंगा की धार निकली वैसे दुःख की कोई राह निकलनी चाहिए। कवि यहाँ पर परिवर्तन की, क्रांति की बात कर रहे हैं। समाज में बदलाव लाना चाहते हैं।
प्रश्न 2.
‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ गज़ल से पाठकों को क्या संदेश मिलता है?
उत्तर:
हो गई है पीर पर्वत-सी’ गज़ल देशवासियों को जागरण का संदेश देती है। यह प्रगतिवादी विचारधारा से प्रभावित होकर लिखी गई गज़ल है। जब तक देश में शोषित-वर्ग का दुःख दूर नहीं होता तब तक देश प्रगति-पथ पर नहीं जा सकता। दुष्यन्त कुमार दीन-दलितों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं। हर प्रान्त के हर पीड़ित व्यक्ति को शान से जीने का अधिकार है। कवि फिर कहते हैं – मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। ऐसी व्यवस्था आनी चाहिए जहाँ सभी लोग आराम से जिएँ।
प्रश्न 3.
पीड़ित व्यक्ति की संवेदना को कवि दुष्यन्त कुमार ने किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तर:
कवि दुष्यन्त कुमार द्वारा गजल शैली में लिखी गई कविता ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ में कवि ने पीड़ित व्यक्तियों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है। दुःखी लोगों की पीड़ा पर्वत सी बन गई है। उस पीड़ा रूपी पर्वत से कोई गंगा निकलनी चाहिए। मनुष्य-मनुष्य के बीच जो दीवारें बन गई हैं उसे खत्म करने की आवश्यकता है। सिर्फ हंगामा खड़ा करना उद्देश्य नहीं होना चाहिए। जब तक यह सूरत नहीं बदलेगी तब तक बदलाव न हो सकेगा। कवि एक प्रकार की क्रांति चाहते हैं जिससे लोगों को दुख-दर्द से मुक्ति मिल सके।
III. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :
प्रश्न 1.
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।
संदर्भ : इस गजल में कवि ने देशवासियों को जागरण का संदेश देते हुए आमूल चूल परिवर्तन का आवाहन किया है।
भाव स्पष्टीकरण : कवि कहते हैं कि आज यह जाति भेदभाव, धर्म और शोषण की दीवार ऐसे हिल रही है, मानो खिड़कियों व दरवाजों के लगे हुए परदे हिल रहे हैं। वास्तव में होना यह है कि सम्पूर्ण बुनियाद ही हिल जाये, ताकि फिर से कुछ नया निर्माण किया जा सके। ऐसी शर्त रख रहे हैं कि परिवर्तन की चाह है जिसमें धर्म-जाति, भेदभाव, शोषण, अत्याचार को जड़ से मिटाना चाहिए।
प्रश्न 2.
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।
संदर्भ : इसमें देशवासियों को जागरण का संदेश मिलता है।
भाव स्पष्टीकरण : देश की तत्कालीन परिस्थितियों का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि दुःखी लोगों की पीड़ा पर्वत सी बन गई है, उसे पिघलना चाहिए। मनुष्य-मनुष्य के बीच जो दीवार बन गई है, उस दीवार की बुनियाद हिलनी चाहिए। हर शहर, हर गाँव के दलित, पीड़ित व्यक्ति को खुशहाली से जीना चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना कवि का उद्देश्य नहीं है, वे इन समस्याओं का समाधान चाहते हैं। देश की परिस्थितियाँ बदलनी चाहिए। सभी को सामंजस्यपूर्ण सुखी जीवन बिताने की व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रश्न 3.
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।
संदर्भ : यह गजल देशवासियों को जागरण का संदेश देती है।
भाव स्पष्टीकरण : इस संसार में दुःखी लोगों की पीड़ा पर्वत सी बन गई है। मनुष्य-मनुष्य के बीच दीवारें बन गई हैं, दूरी बढ़ती जा रही है। कवि ने ऐसी प्रगति परक विचार धारा इस कविता में भर दी है कि हर प्रान्त के, हर गली, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए झूमते हुए धैर्य से चलना चाहिए। दुःख सुख में परिवर्तित होना चाहिए। सचमुच देश में प्रगति तभी संभव है जब देश के सभी प्रान्त, सभी वर्ग के लोग एक जुट होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें।
प्रश्न 4.
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।
भाव स्पष्टीकरण : प्रगतिवादी विचारधारा को व्यक्त करते हुए कवि दुष्यन्त कुमार देश की जनता को प्रगति-पथ पर ले जाने व सुखी जीवन की परिकल्पना करते हैं। वे देखते हैं कि समाज में दुःख, दारिद्र्य, शोषण सब कुछ अभी भी है। आज के मानव वर्ग की पीड़ा हिमालय पर्वत के समान बन गई है। वे आशा करते हैं कि इस पीड़ा रूपी पर्वत से गंगा निकलनी चाहिए। अर्थात् ये परिवर्तन की आग चाहें किसी के भी मन से उठे, उसे उठना चाहिए। इसके माध्यम से कवि देशवासियों को जागरण का संदेश देते हैं।
अतिरिक्त प्रश्न :
प्रश्न 1.
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
उत्तर:
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।
संदर्भ : प्रस्तुत कविता में कवि भारतीय जनता की पीड़ा को पर्वत जैसी विशाल बताते हुए उसे क्रान्तिकारी बदलाव के लिए आह्वान कर रहे हैं।
भाव स्पष्टीकरण : कवि कहते हैं कि देश की राजनीतिक व्यवस्था में चरम सीमा तक पहुँच चुके भ्रष्टाचार, अवसरवाद एवं कुशासन से तंग आ चुकी जनता को बदलाव के लिए तैयार हो जाना चाहिए। कवि जनता से बदलाव के लिए आह्वान करते हैं। वे कहते हैं- अगर व्यवस्था के प्रति आपके मन में आग है, गुस्सा है तो उसे प्रकट कीजिए। परिवर्तन के लिए दूसरों का इंतजार नहीं करना चाहिए। अगर इतने पर भी कोई चुप बैठा है या उसे तकलीफ नहीं हो रही है तो ऐसे में आपको भी चुप नहीं रह जाना चाहिए। आप आगे बढ़िए। लोग धीरे-धीरे आपके पीछे आएंगे। देश की वर्तमान व्यवस्था को मूल से बदले बिना परिवर्तन नहीं होगा। इसलिए आमूल-चूल परिवर्तन के लिए कोशिश कीजिए।
विशेष : भाषा खड़ी बोली। गज़ल में आपात काल पूर्व भारत की राजनीतिक स्थिति की आहटें महसूस की जा सकती है।
हो गई है पीर पर्वत-सी कवि परिचय :
कवि, गीतकार, उपन्यासकार, नाटककार एवं आलोचक दुष्यन्त कुमार का जन्म 1931 ई. में बिजनौर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के उपरांत आपने कुछ वर्ष आकाशवाणी भोपाल में काम किया। आप बाद में मध्यप्रदेश भाषा-विभाग, भोपाल से जुड़े जहाँ आप सह-संचालक के रूप में कार्य करते रहे।
आपको ‘नई कविता’ का कवि माना जाता है। आपने अपने लेखन के अन्तिम दौर में ‘गजल’ को अपनाया। इस विधा में आपने नए आयाम स्थापित किये जिसमें आपको बहुत प्रसिद्धि मिली। आपकी मृत्यु 1975 ई. में हुई।
आपकी रचनाएँ : काव्य : ‘सूर्य का स्वागत’, ‘आवाजों के घेरे’, ‘जलते हुए वन का वसन्त’, ‘एक कंठ विषपायी’ (काव्य-नाटक) ‘साए में धूप’ (गजल-संग्रह)।
उपन्यास : ‘छोटे-छोटे सवाल’, ‘दुहरी जिन्दगी’, ‘आँगन में एक वृक्ष’|
नाटक : ‘और मसीहा मर गया’। एकांकी : ‘मन के कोण’।
हो गई है पीर पर्वत-सी कविता (गज़ल) का आशय :
प्रस्तुत गजल ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ ‘साए में धूप’ गज़ल-संग्रह से ली गई है। यह गजल देशवासियों को जागरण का संदेश देती है।
हो गई है पीर पर्वत-सी कविता (गज़ल) का भावार्थ :
1) हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
कवि दुष्यंत कुमार के अनुसार समाज में कई प्रकार की विसंगतियाँ देखने को मिलती हैं। मनुष्य-मनुष्य से ईर्ष्या, घृणा करते रहने से पीड़ाएँ पर्वत के समान फैल गई हैं। इसे पिघलना चाहिए। हिमालय से गंगा को निकलना चाहिए।
2) आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
आज यह दीवार ऐसे हिल रही है, मानो खिड़कियों व दरवाजों के लगे हुए परदे हिल रहे हैं। वास्तव में होना यह है कि सम्पूर्ण बुनियाद ही हिल जाये, ताकि फिर से कुछ नया निर्माण किया जा सके। ऐसी शर्त रख रहे हैं कि परिवर्तन की चाह है।
3) हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर तथा गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
4) सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
समाज को यदि बदलना है, तो केवल आवाज देने या घोषणा करने से कुछ होगा नहीं। कवि का अटूट विश्वास है कि सिर्फ हंगामा करना उनका उद्देश्य नहीं है, बल्कि पूरी कोशिश रहेगी कि सूरत ही बदल दी जाये। तात्पर्य यह है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। उसके लिए जन-जागृति अति आवश्यक है।
5) मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
कवि अन्त में जागृत करते हुए कहते हैं कि मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में ही सही, आग होनी चाहिए, लेकिन वह आग सदा जलती रहनी चाहिए।
हो गई है पीर पर्वत-सी Summary in Kannada
हो गई है पीर पर्वत-सी Summary in English
This poem has been taken from a collection of ghazals, written by Dushyant Kumar. These ghazals give the message of patriotism to the people of India.
The poet feels that in today’s society, we can witness many discrepancies and disturbances. Fear, loathing, and jealousy between people have created a mountain of troubles out of nothing The poet feels that this mountain must melt. This mountain, which is like the Himalayas, must give birth to a river.
Today, the walls of our houses are shaking. They are shaking in such a way that it is as if even the curtains of the windows and the doors are shivering. In reality, it just so happen that the entire structure must be shaken out so that some new construction can be begun. The poet places such a condition that it proves the want and desire for a revolution.
In every city and every village, on every street and in every lane, hands are waving such that even corpses should get up and begin to walk.
For society to experience a change, only speeches and warnings are going to be insufficient. The poet is supremely confident that only creating noise and ruckus is not his intention, rather his complete effort will be towards totally changing the face of society. The implied meaning is that those who keep trying will never fail.
The poet believes that for a change to happen in society, there must be awareness among the public.
In conclusion, the poet tries to make the reader aware that if not in his heart, then so be it in another’s heart – there must be a burning desire for change. Irrespective of whose heart the fire burns in, it must, however, continue to burn with the same ferocity. This is the only way that change can happen in society.
कठिन शब्दार्थ :
- पीर – पीड़ा;
- पर्वत-सी – पर्वत के समान;
- बुनियाद – नींव;
- लाश – निर्जीव;
- हंगामा – शोर;
- सीना – हृदय।